• New product

Premchand Ke Aarambhik Lekhan Ka Mahattva Evam Anya Nibandh

(0.00) 0 Review(s) 
2017
978-93-82554-93-6

Select Book Type

Earn 5 reward points on purchase of this book.
In stock

प्रेमचंद के हिंदी लेखन के आरंभ के संबंध में डॉ. कमलकिशोर गोयनका की प्रस्तावना एक भिन्न बहस को जन्म देती है। उनका मत है कि प्रेमचंद अपने लेखन का माध्यम भले ही उर्दू चुनते हैं पर उन पर प्रभाव हिंदी नवजागरण का था। उनके शब्द हैं, फ्प्रेमचंद का साहित्य में पदार्पण नवजागरण के इसी राष्ट्रीय परिदृश्य में हुआ। उनका जन्म और शिक्षा भारतेंदु युग में हुई और उपन्यास एवं कहानी के क्षेत्र में प्रवेश द्विवेदी युग में हुआ और इस प्रकार दोनों ही युग उनके व्यक्तित्व एवं सर्जनात्मकता के अंग बने। प्रेमचंद के उर्दू मासिक पत्रिका जमाना में 1903 से 1919 तक जो 28 लेख प्रकाशित हुए हैं, उनमें इन दोनों ही युगों की प्रवृत्तियाँ विद्यमान हैं, जो इसकी प्रमाण हैं कि उनकी लेखकीय चेतना में हिंदी नवजागरण का स्वरूप ही समाया था।य् ऐसी प्रस्तावनाओं के अपने खतरे हैं। इसमें एक ओर प्रेमचंद को हिंदी का ‘ही’ सिद्ध करने का प्रयास है तो दूसरी ओर उर्दू साहित्य में मौजूद राष्ट्रीय जागरण के तत्त्वों को भूला देने की मंशा भी समायी है। हम एक निर्धारक रेखा खींचकर यह नहीं बता सकते हैं कि प्रेमचंद की कहानियों में मौजूद कौन सी चीज हिंदी कथा परंपरा की है और कौन उर्दू कथा परंपरा की। डॉ. गोयनका की इस ‘इच्छा’ का कोई अर्थ नहीं है कि प्रेमचंद की आरंभिक उर्दू कहानियों को हिंदी का ‘ही’ मान लिया जाए। उनके अनुसार प्रेमचंद की आरंभिक कहानियों में बेहद उत्कट और मुखर रूप से उपस्थित देशप्रेम केवल हिंदी की चीज है। यह केवल संकीर्ण दृष्टि का मामला नहीं है, बल्कि उससे बढ़कर है। राष्ट्रीय जागरण केवल हिंदी की चीज नहीं थी, वह उर्दू समेत दूसरी अन्य भारतीय भाषाओं में भी मौजूद है। अगर डॉ. गोयनका ‘जमाना’ के अंकों को ही ढंग से देखते तो यह बात उनकी समझ में आ जाती। -इसी पुस्तक से

You might also like

Reviews

No Reviews found.