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Premchand - Nayee Drashti : Naye Nishkarsh
प्रेमचन्द हिन्दी के पहले ऐसे कहानीकार थे जिन्होंने कहानी की रचना के साथ–साथ कहानी के आधुनिक शास्त्र को भी स्वरूप प्रदान किया । प्रेमचन्द ने यद्यपि ‘सोज“ेवतन’ से ‘कफ’न’ कहानी तक जो लगभग तीन सौ कहानियों की रचना की थी उनसे भी उनका कहानी शास्त्र समझा जा सकता है, लेकिन यह महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि वे ‘सोज“ेवतन’ की कहानियों की रचना के साथ ही आधुनिक कहानी के सिद्धान्त, उसके स्वरूप तथा उसकी भाषा–शिल्प के रूप की भी रचना कर रहे थे । यह एक अद्भुत घटना है कि कहानी की रचना के साथ कहानी के आधुनिक शास्त्र का उद्भव और विकास भी साथ–साथ हुआ और कभी ऐसा भी हुआ कि अपने शास्त्रीय चिन्तन का अतिक्रमण करके उन्होंने कहानी को शास्त्रीयता से मुक्त कर दिया । प्रेमचन्द कहानी सम्राट थे तो वे कहानी के शास्त्रकार भी थे, लेकिन उनकी विशेषता यह थी कि वे दोनों ही क्षेत्रों में गतिशील बने रहे और अपने युग की धड़कनों तथा समाज एवं राष्ट्र की नयी व्याकुलताओं तथा परिस्थितियों से गहराई से जुड़े रहे । वे हिन्दी के पहले ऐसे कथाकार थे जिन्होंने साहित्य के पुराने प्रतिमानों तथा कसौटियों का भंजन किया और नये युग के नये प्रतिमान स्थापित किये । प्रेमचन्द के साहित्य में आगमन के समय बीसवीं शताब्दी का आरम्भ हो चुका था और युग की परिस्थितियों एवं देश की चिन्तनधारा में तेजी से परिवर्तन हो रहा था । मध्य युग की पराजय, हताशा, चाटुकारिता, भद्दा मनोरंजन, विलासिता, भक्ति–भाव तथा दासता की जंजीरें टूटने के लिए व्याकुल हो रही थीं और पश्चिम के नये ज्ञान–विज्ञान के साथ स्वदेशी तथा आत्म–गौरव की रक्षा का प्रबल भाव उदित हो रहा था । भारत की उन्नीसवीं– बीसवीं शताब्दी की इस नयी चेतना को आत्मसात् कर हिन्दी साहित्य में उतरने वाले प्रेमचन्द पहले लेखक थे ।
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