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Purana ghar Purani Basti
‘पुराना घर : पुरानी बस्ती’ राजेंद्र दानी की तेरह कहानियों का संग्रह है । इस संग्रह में दानी जी बिना किसी शोर शराबे के उन परिस्थितियों पर चोट करते हैं, जिन परिस्थितियों ने भारत के आम आदमी की जिंदगी में घुन पैदा कर दिया है । इक्कीसवीं सदी और उसके पिछले दशक से जो अर्थव्यवस्था भारत जैसे परंपरागत दशको में अपनाई गई उसने न केवल मध्यवर्ग के सामाजिक जीवन में छेद पैदा किया है अपितु नैतिक जीवन को भी तहस–नहस कर दिया है । एक जमाना था जब आदमी अपनी सीमाओं में रहकर निर्कुण्ठ जीवन जीता था पर अब धन और सुविधाओं की अपार बाढ़ ने उसके जीवन में तरह–तरह की एशणाएं उत्पन्न कर दी हैं, जिनसे वह न केवल अंदर से टूटा है बल्कि बाहर भी अकेला पड़ गया है । आदमी के इस अकेलेपन के दर्द को दानी जी की कहानियां कई कोणों से उठाती हैं और व्यापक परिदृश्य में रेखांकित करती हैं कि यह आदमी जो हमारे अपने समाज का ही है अपने ही परिवार में अकेला पड़ गया है । यह अकेलापन इसलिये भी भयावह है कि यह अचानक आई सम्पन्नता ने दिया है । ‘सम्पन्नता’ उनकी एक कहानी का भी शीर्षक है पर बात एक कहानी की न होकर उनकी तमाम कहानियों के उस मूल तत्व की हो रही है जो कुरेदने पर अचानक मिल जाता है । राजेंद्र दानी अपनी कहानियों को जिस तरह बुनते हैं, उससे कहानी अपने आसपास की होकर भी हमारे व्यापक समाज की अभिव्यक्ति बनती है । धन और ऐश्वर्या के इस चमत्कारी युग में दानी जी की नजर उन अंधेरों पर है, जो इस दुनिया का बहुसंख्यक भाग है लेकिन उसकी चिंता किसी को नहीं है । सब ऊपर के चमत्कार को तो देख रहे हैं लेकिन उसके तलछट में व्यक्ति कितना अकेला और कितना असहाय है, उस पर दानी जी की नजर है । मध्यवर्ग पर कहानियां सबसे अधिक लिखी जाती हैं लेकिन अंदर की बेचैनी से खदबदाते मध्यवर्गीय व्यक्तियों पर । दानी जी अपने ही समाज के उन सभी व्यक्तियों की कहानियां ले आते हैं इसलिये वे अपने रचाव में विशिष्ट हैं, और यही विशिष्टता उन्हें अलग पहचान देती है। -सूरज पालीवाल
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