- New product
Rahul Ke Joote
परमेश्वरी दीक्षित रईस व सम्पन्न परिवार का होनहार सपूत था । बम्हन टोले में मौजूद तिमंज़िले मकान का एकमात्र उत्तराधिकारी । माता–पिता निचली मंज़िल में रहते थेय वहीं उनकी रसोई भी थी जिसमें प्याज–लहसुन का प्रवेश संभव नहीं था पर वे जानते थे, होस्टल में रहकर लौटे बेटे से इतनी सात्विकता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, इसलिए परमेश्वरी की रिहाइश दूसरी मंज़िल पर और रसोई तीसरी मंज़िल पर रखी गई थी ताकि प्याज–लहसुन की गन्ध से माता–पिता परेशान न हों । इस परिवार में कपड़े का व्यवसाय होता था । सदर चैराहे पर बड़ी सी दोमंज़िली दूकान और बम्हनटोले में तिमंजिला मकान । 22–23 की उम्र वाले परमेश्वरी का चेहरा–मोहरा सजीला और तिजोरी भरी थी । कौन था, जो अपनी बेटी या बहन उससे ब्याहना न चाहता हो । लेकिन वह किसी की पकड़ाई में न आता था । एक तरफ थीµउसे घेर–घार कर काबू में लाने वालों की पेशकशय दूसरी तरफ थेµउसके झांसे, बहाने, टालमटोल और तरह–तरह की शर्तें या मांगें । ‘चूहा भाग, बिल्ली आई’ वाला यह खेल काफ़ी वक्“त तक चलता रहा था । दूसरे माइनों में, वह बाक़ायदा एक जंग थी, जिसमें अभी तक तो परमेश्वरी का ही पलड़ा भारी साबित हुआ था । लेकिन जब उसके कुछ जिगरी दोस्त मैदान में कूद पड़े और सैर–सपाटे पर उसे ले जाने, फिल्में दिखाने या दावतें देने के सिलसिले शुरू हुए तो परमेश्वरी ने उनको राज़ी किया कि सब दोस्त मिलकर ‘ब्राह्मण सुधार सभा’ का गठन करें जो जातीय कुरीतियों–अन्धविश्वासों के खिलाफ़ ब्राह्मण–समाज को जागरूक करेगी । तय हुआ कि उसकी बैठकें हर मंगलवार परमेश्वरी के घर की तीसरी मंज़िल पर हुआ करेंगी जहाँ वह अपनी खास ईजाद ‘फ़तेहपुरी पुलाव’ सबको परोसा करेगा । -‘फतेहपुरी पुलाव’ कहानी से
You might also like
No Reviews found.