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Rajnitik Kavita Ki Avdharna Aur Nagarjun Ka Kavi-Karm

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2017
978-93-85450-97-6

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सक्षम आलोचनात्मक विवेक के साथ राजनीतिक विचारधाराओं के अंतर्विरोध और विशेषताओं को पहचान कर नागार्जुन ने अनेक कविताएँ रची । स्वतंत्रता के बाद उन्होंने राजनीति के घटनामूलक यथार्थ पर ढेरों कविताएँ लिखी । उनकी कविता का बहुलांश इस बात का प्रमाण है । नागार्जुन ने स्वयम जन–संघर्षों में हिस्सा लिया और आंदोलनों के उद्देश्य तथा रंग बदलते चेहरे को भी नजदीक से देखा और उसे कविताओं में अभिव्यक्त किया । इनकी कविताओं में कई जगह नारा है, तो कहीं–कहीं नारा कविता में बदल गया है । नागार्जुन की कविता को पढ़कर यह जाना जा सकता है कि कविता आदमी को किस तरह लड़ने की समझ देती है और व्यक्ति के सांस्कृतिक पक्ष को मजबूत करती है । नागार्जुन की राजनीतिक संदर्भों की कविता को पढ़कर यह प्रश्न अक्सर उठता है कि क्या राजनीतिक कविता की कोई ऐसी पहचान हमारे पास है जैसी की राष्ट्रीय–सांस्कृतिक कविता की । साठोत्तरी दशक में कविता के वे तेवर जो तत्कालीन राजनीतिक की कूटचालों और मोहभंग के फलस्वरूप दिखाई देने लगे उनकी शुरुआत कहीं न कहीं नागार्जुन से होती है । सन् 1949 में नागार्जुन ने कविता, “रामराज में रावन अबकी नंगा होकर नाचा है” वर्तमान संदर्भों में भी यह कविता उतनी ही सार्थक है जितनी उस समय थी । नागार्जुन के यहाँ ऐसी अनेक कविताएँ हैं जो तत्कालीन घटनाओं को काव्य–विषय बनाकर भी उस तात्कालिकता से मुक्त हैं । राजनीति की जड़ फिकरों वाली भाषा से मुक्त होकर इस प्रकार की कविता किस प्रकार काव्योपयोगी सार्थकता प्राप्त कर लेती हैµप्रस्तुत पुस्तक में नागार्जुन का अध्ययन इसी दृष्टि से किया गया है ।

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