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Rashtriye Punarjagran Aur Ramvilas Sharma
आलोचना का अर्थ क्या है और रामविलास शर्मा ने इसका दायरा कितना विस्तृत किया, यह राष्ट्रीय पुनर्जागरण का प्रश्न और रामविलास शर्मा से उभर कर आता है । यह अतीत और वर्तमान के बीच ऐसा संवाद है, जो भारत की साहित्यिक स्मृतियों और स्वप्नों को खोलता हैµइतिहास के पुनर्गठन के लिए । भारत जब ‘राष्ट्र राज्य’ से ‘बाजार राज्य’ में बदल रहा है और विदेशी पूंजी के सहयोग से ज्ञान का उपनिवेशन बढ़ा है, शंभुनाथ इस पुस्तक में न सिर्फ भारतीय आलोचना के शिखर व्यक्तित्व रामविलास शर्मा की चिन्ताओं को सामने लाते हैं, बल्कि परम्पराओं और विविधता–भरे समकालीन परिदृश्य को समझने की एक ठोस विचारभूमि देते हुए नए प्रश्न भी खड़े करते हैं । रामविलास शर्मा ने रूढ़िवादी, यूरोपकेन्द्रिक और यान्त्रिक भौतिकवादी धारणाओं का खण्डन करके हिन्दी जातीय निर्माण और राष्ट्रीय जागरण के सवाल क्यों उठाए, वैश्वीकरण और सबाल्टर्न इतिहास के रिश्ते को कैसे पहचाना, किसान, स्त्री और दलित को किस ‘स्थान’ से देखा, भाषा समस्या को इतना महत्त्व क्यों दिया, भारत की महान सांस्कृतिक विरासत की नये सिरे से खोज करते हुए, इसे साथ लेकर किस तरह आजीवन साम्राज्यवाद से संघर्ष किया और क्या अब देश को राष्ट्रीय पुनर्जागरण की जरूरत है, शंभुनाथ की पुस्तक में इन मुद्दों पर खुले मन से चर्चा है । आज जब चारों तरफ ताकत की भाषा छाई हुई है, यह आलोचना एक आत्मनिरीक्षण है, एक सांस्कृतिक लड़ाई है और कट्टरताओं के बीच जीवन के लिए जगह बनाना है ।