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Sab Kahan Kuch

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978-93-92998-02-7

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अपनी ओर से मैं सिर्फ़ इतना ही कह सकता हूँ कि परिस्थितियों को बदलने वाले ‘लीवर’ पर मेरा वश भले न हो, लेकिन शस्त्र के रूप में शब्द का जो साधन मुझे सुलभ है उसकी समस्त सम्भावनाओं का उपयोग करना चाहता हूँ । शब्द को मैं जादू नहीं समझता, लेकिन उसकी शक्ति में मेरी आस्था अब भी है, इसलिए तर्क और बुद्धि पर भी विश्वास है और खुली बहस की उपयोगिता पर भी । ‘न कहने से कुछ होगा, न करने से’ यह धारणा व्यापक रूप से बद्ध मूल हो जाए, इससे पहले, कम से कम कहने की ताक’त आजमा लेना चाहता हूँ । क्या आप भी इसमें साथ देने को तैयार हैं ? आपका नामवर (इसी पुस्तक से)

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