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Sahitya Samvad
अंग्रेजी ही नहीं, हिंदी के भी अधिकांश लेखक–पाठक रस्किन बांड के नाम से परिचित होंगे । मगर फिर भी इतना बता देना गैरजरूरी नहीं होगा कि रस्किन की गिनती देश के लोकप्रिय अंग्रेजी लेखकों में की जाती है । लेकिन वे अपने आप में अनूठे हैं । उनकी तुलना पंकज मिश्र या राजकमल झा सरीखे भारत के अंग्रेजी उपन्यासकारों से नहीं की जा सकती, जो भारत के विविधतापूर्ण, बहुरंगी जनजीवन और यहां के लोमहर्षक यथार्थ में एग्जॉटिक–इरोटिक का तड़का लगा कर, उन्हें अपने उपन्यासों का कथानक बना कर पश्चिम को चैंकाते हैं और करोड़ों की अग्रिम रॉयल्टी पाते हैं । न ही वे खुशवंत सिंह और शोभा डे की तरह अपने कहानियों–उपन्यासों–संस्मरणों में यौन–संबंधों के अतिरेक की चाशनी से अंग्रेजीदां मध्यम वर्ग को लुभाते हुए अपनी मार्केटिंग करते हैं, न ही अरुंधति रॉय की तरह रस्किन की छवि एक एक्टिविस्ट लेखक की है, जो नर्मदा बचाओ आंदोलन, कश्मीर समस्या से ले कर नक्सल समस्या तक धारा के विरुद्ध अपने विचारों, सरोकारों य सत्ता और पूंजीवादी ताकतों की पुरजोर मुखालफत के लिए जानी जाती हैं । साहित्यिक मानदंडों के लिहाज से रस्किन को ‘मूर्धन्य’, ‘प्रख्यात’, ‘विख्यात’ आदि की कोटि में भी नहीं रखा जा सकता । वह साहित्यिक जोड़–तोड़ और महत्वाकांक्षाओं से दूर लिखने को अपना धर्म मानते हुए चुपचाप लिखने और जीने वाले शख़्स हैं ।
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