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Samagra Hasya-Vyangya
पूर्ण सिंह डबास के हास्य–व्यंग्य साहित्य में जो विषयगत विविधता दिखाई देती है वह अपने आप में विरल है । उन्होंने अनेक लेख स्वयं को केन्द्र मानते हुए लिखे हैं जो उनकी एक निजी विशेषता है । ऐसे लेखों में ‘काश मेरा भी घेराव होता, मेरा निजी संग्रहालय, कब होगा मेरे विरोध में प्रदर्शन, आखिर तुम्हें कैसे पुकारूँ, अगर प्रधानन मंत्री बनना पड़ जाए, मेरा सच्चा श्रद्धांजिली भाषण’ आदि की विशेष चर्चा की जा सकती है । इस निजता या व्यक्ति–रूप से आगे बढ़ते हुए उनके साहित्य का परिवेश घर–परिवार (जाँच आयोग की चपेट में घर का चूहा, अपनी वो, बेचारा पति)य पास–पड़ौस (हमसाया माँ का जाया, पड़ौसी की लॉटरी, कुत्ता कल्चर)य विभिन्न सामाजिक परिदृश्य (किराएदार बटा मकानदार, शुभ–विवाह, प्रीतिभोज का प्रायश्चित्त, कुत्ता सैर, राशन कार्ड बिना सब सूना)य फिल्मी संसार (खलनायक का खुला खत नायक के नाम, भाग जाने का भविष्य उज्ज्वल है)य मीडिया (आकाश वाणी के लिए एक परिचर्चा, एक नेताजी की पै्रस कान्फ्रेंस, ब्रेकिंग न्यूज यानी तोड़क समाचार), भाषा व शिक्षा–जगत (प्रो– फड़ेन्द्र सिंह, बुद्धि जीवियों के जंगल मेंं, गिरना एक कौए का पानी की टंकी में, आलोचक सम्राट, उच्चतर साहित्यिक व्याख्या) प्रशासन (गुम होती फाइलें, लेट चल रहे हैं) धार्मिक आडम्बर (सत्संग महिमा, चरणधूलि इंटरनेशनल, कुर्सी देवी का अत्यंत प्राचीन मंदिर) तथा राजनीति (राजनीति उद्योग में रोजगार की अर्जी, घोषणा पत्र बिकाऊ है, कुर्सी प्रधान देश) आदि तक अत्यन्त विस्तृत है । ‘दुर्गति मैदान’ तथा ‘बाप की तलाश में एक आत्मा’ शीर्षक दो बड़े लेखों में तो व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक की शायद ही कोई ऐसी दुष्वृत्ति या विसंगति बची हो जिस पर गहरी चोट न की गई हो ।