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Samajik Prikalpana Rajendra Yadav Ki Kahaniyo Mai
समाज, साहित्य और मानव–व्यक्तित्व का जीवन से अटूट सम्बन्ध है । साहित्यकार अपनी रचनाओं को इन सब के विकास में एक माध्यम के रूप में स्वीकारते हैं । ‘राजेन्द्र यादव की कहानियों में सामाजिक परिकल्पना’ इसके इर्द–गिर्द की सोच की परिणति है । साहित्य मानव की सर्जना है । बदलने वाले समाज में उसकी मान्यता एवं धारणा भी बदलती रहती है । बदलती नीतियों के साथ उसके दृष्टिकोण में भी परिवर्तन होना स्वाभाविक है । नई कहानी को लेकर राजेन्द्र यादव जो धारणा अपने में समाहित करती उस से ओत प्रोत रचना है यह । व्यक्ति के जरिए समस्याओं का विस्तार एवं सुलझाव इसका ध्येय है ।
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