• New product

Samvednaon Ke Kranti Beej

(0.00) 0 Review(s) 
2014
978-93-81997-87-1

Select Book Type

Earn 3 reward points on purchase of this book.
In stock

आज रचनाकार और पूँजीवाद दोनों एक दूसरे को चुनौती देता आमने–सामने खड़ा है, तो फिर क्यों नहीं आदमी की सम्वेदना को जीता काव्य जगत को पूँजीवाद अपनी साजिशों के तहत मिटाने की मंशा रखेगा ? इसी सोच में वह आदमी की रचनात्मकता की पूर्ति इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से कराना शुरू कर दिया है, जहाँ देह संस्कृति और भौतिकता का स्वप्न सुख लेने को आदमी परेशान है । आदमी की प्रकृत भावनाओं को उत्तेजित कर उनमें अपसंस्कृति का संस्कार डालने का यथासंभव कुत्सित प्रयास जारी है । उसकी बाजारवादी संस्कृति चाहती है, साहित्य, संगीत, कला और परम्परागत नैतिक मूल्यों को अपदस्थ कर एक क्षणिक और भौतिक सुख की अपसंस्कृति के निर्माण में मनुष्य की आत्मा के नैसर्गिक शिल्प संसार को ही खत्म कर एक अनैतिक देह संस्कृति का विकास हो । ऐसी ही परिस्थितियों के बीच आज का रचनाकार जीवन–जगत के अनेक सवालों से जूझता खड़ा है, जहाँ इनकी कविताओं का प्रमुख स्वर सामाजिक बदलाव के पक्ष में है, जो साँस्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा के साथ–साथ न्याय और अधिकार की भी बात है । -प्रतिरोध और प्रतिबोध इन कविताओं का स्थायी भाव है ।

You might also like

Reviews

No Reviews found.