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Sarthak Upasthiti Ke Sakshya
‘सार्थक उपस्थिति के साक्ष्य’ में दस विभूतियों का आलोचनात्मक रेखांकन शामिल है । यहाँ मैं जानबूझकर सिर्फ ‘आलोचना’ शब्द का प्रयोग नहीं कर रहा हूँ । सम्मिलित सर्जकों (रामचन्द्र शुक्ल से लेकर राजेश जोशी तक) की विचारधारागत–आस्थागत विशिष्टताओं व विभिन्नताओं से लेखक भलीभाँति परिचित है । इनको ,क जगह–,क साथ रखने की ,क ही शर्त है और वह है–इनकी ‘सार्थक सर्जनात्मक उपस्थिति’ । दरअसल यह पुस्तक ‘सार्थक उपस्थिति’ का प्रथम ख–ड है । इसके दूसरे ख–ड में महावीरप्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा, विजयदेव नाराय–ा साही आदि शामिल होंगे । चाह कर भी अज्ञेय और रामविलास शर्मा को मैं इस ख–ड में शामिल न कर सका । पाठक इस कमी को महसूस करें या न करें, मुझे सचमुच इनकी कमी खल रही है । खैर, जो न हो सका उसके लि, क्या गम! और जो है वो आपके सामने ही है । हाँ, अलग–अलग समय और माँग के मद्देनज़र सम्मिलित लेखांध की अन्विति, संहति ,वं स्वरूप में भिन्नता आ जाना स्वाभाविक ही है । सम्मिलित आलेखों से गुज़रते हु, पाठक इसका अहसास सहज ही करेंगे । लेखक अपनी सीमा और शक्ति से वाकिफ़ है और उनका भरपूर आदर भी करता है । वैसे हर व्यक्ति को समय रहते अपनी शक्ति और सीमा का ज्ञान हो जाये तो अच्छा है । इसलि, स्पष्ट कर देना जरूरी है % इन लेखों में ‘मेरा अपना’ सचमुच बहुत कम है, और ‘दूसरों का दान’ ही कुछ ज्यादा । पुस्तक में जो कुछ अच्छा या उल्लेखनीय है वह दूसरों का ही ‘अभिज्ञान’ है( लेखक का काम संग्रह करना ही अधिक रहा है । –‘स्पष्टीकरण’ से
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