• New product

Shahari Jan Parivahan

(0.00) 0 Review(s) 
2016
978-93-82821-91-5

Select Book Type

Earn 11 reward points on purchase of this book.
In stock

हमारे शहरों में परिवहन का यह जो नजारा है, कोई प्राकृतिक त्रासदी नहीं है । यह मानव–निर्मित परिदृश्य है । परिवहन के सवालों पर राजनैतिक साक्षरता और इच्छाशक्ति का अभाव है । इसलिए सरकारी नीतियां, हमारे नगर–योजनाकार और नगर–प्रशासक शहर में परिवहन का ऐसा तंत्र खड़ा नहीं कर पाते, जो सभी नागरिकों के लिए सस्ता, सुलभ और टिकाऊ हो । यदि सड़क पर सभी वाहनों को समान अधिकार मिले, यानी सड़क पर उन वाहनों में सफर कर रहे नागरिकों के सुरक्षित और सुविधानुकूल आवागमन की व्यवस्था की जाए, तो हमारी बहुत सारी मुश्किलें आसान हो सकती हैं । तब न तो महंगी मेट्रो रेल, फ्लाइओवर जैसी योजनाओं की जरूरत होगी और न ही इतने बड़े पैमाने पर पेट्रोलियम र्इंधन आयात की । इस बचे हुए पैसे से हम अपने सभी नागरिकों के लिए अच्छा आवास, अच्छी शिक्षा, अच्छे स्वास्थ्य और मनोरंजन की व्यवस्था कर सकते हैं । लेकिन हमें पता है कि दुनिया–भर की वर्तमान सरकारें बहुराष्ट्रीय निगमों और पूंजीवादी संस्थानों के दिशा–निर्देशों के अनुकूल अपनी नीतियां बना रही हैं और उन नीतियों के अनुरूप शहर का पूरा परिवहन–ढांचा तैयार किया जा रहा है । यह जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिए कुछ हद तक जनता भी दोषी है । यदि वह चुप रहने की बजाय अपने हक–हकूक के लिए आवाज उठाने लगे, तो निश्चित है कि उसे उसका हक मिलेगा । हमारा यह कहना कोई कोरी गप्पबाजी नहीं है । दुनिया–भर में विभिन्न शहरों में गैरमोटर–वाहनों के पक्ष में आंदोलन शुरू हो गए हैं और जहां ऐसे आंदोलन मजबूत हैं वहां सड़कों पर साइकिल, रिक्शा, तांगा, पैदलयात्रा के लिए सड़क–ढांचा तैयार किया जा रहा है ।

You might also like

Reviews

No Reviews found.