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Shatabdi Ka Sach
समकालीन हिन्दी कहानी में शिव कुमार शिव एक स्थापित नाम है । पिछले बीस–पच्चीस वर्षों में लिखी उनकी लगभग सभी कहानियाँ ‘शताब्दी का सच’ में संकलित हैं । यह एक संयोग ही है कि जिन दिनों शिव कुमार शिव कहानी–लेखन में सक्रिय होते हैं उन्हीं दिनों कहानी की चर्चित पत्रिका ‘हंस’ का प्रकाशन प्रारम्भ होता है । यह भी उल्लेखनीय है कि शिव की अधिकांश कहानियाँ ‘हंस’ में ही प्रकाशित हुई हैं । इसलिए ‘हंस’ के सम्पादक राजेन्द्र यादव शिव की कहानियों के अनिवार्य पाठक और प्रथम प्रस्तोता हैं । उनकी कहानियों के बारे में राजेन्द्र यादव जब यह कहते हैंµ‘भीतर से बाहर निकलने वाला आदमी दहलीज पर खड़ा होकर सरसरी नजर से जिस तरह आसपास का जायजा लेता है, शिव की कहानियाँ उसी व्यक्ति की याद दिलाती हैं । वे घर और बाहर के बीच की कहानियाँ हैं । घर की बन्द दुनिया से बाहर की खुली असुरक्षा भरी घटनाओं–दुर्घटनाओं की आशंकाएँ और बाहर की अपरिचित, अनपहचानी दुनिया के बीच सुरक्षा में लौटने की ललक शिव के नायकों को गतिशील रखती है ।’ तो इसका मतलब यही है कि शिव कुमार शिव अपनी कहानियों में कोई दूर की कौड़ी नहीं लाते बल्कि आस–पास और रोजमर्रा की जिन्दगी से ऐसे पात्रों और कथाबिम्बों को चुनते हैं जो कहानी नहीं हकीकत की तरह जेहन में जगह बनाते हैं । कथ्य ने शिल्प की सवारी की है या शिल्प कथ्य को बहा ले गया है यह शिव की कहानियों में तय करना मुश्किल है क्योंकि वे अपना ज्ञान कहानी में थोपते नहीं, चरित्रों को अपना जीवन जीने देते हैं और इसी जीवन से विचार निस्सिृत होता है । यही वैशिष्ट्य शिव कुमार शिव को विलक्षण कथाकार बनाता है । इसलिए यह आकरण नहीं कि ‘शताब्दी का सच’ में सिर्फ बीसवीं शताब्दी का सच नहीं इक्कीसवीं शताब्दी की आहट भी सुनाई पड़ती है ।
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