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Shor Ke Beech Samvad Pihdiyan Saath- Saath

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2018
978-93-87145-44-3

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एक साथ पांच पीढ़ियों का रचनारत रहना हिंदी कथा साहित्य की चैहद्दी को विस्तार देने के साथ उसे सशक्त करती है । दिक्कत तब होती है जब पीढ़ियों को एक–दूसरे के प्रतिरोध में साजिशन खड़ा कर दिया जाता है । यह नई कहानी के दौर में भी हुआ जब तत्कालीन युवा कथाकारों ने अपने पूर्वज, वरिष्ठ पीढ़ी को खारिज कर दिया था । एक बार वही कहानी इस शताब्दी के आगाज के साथ ही दोहराई गई–युवा पीढ़ी बनाम पुरानी पीढ़ी की टकराहटें ‘मनुष्य विरोधी’ और ‘दो कौड़ी के लेखक’ सरीखे हल्के स्वर के बयानों तक पहंुच गई । इससे पहले कि यह टकराहट परवान चढ़ती हमने ‘पाखी’ की ओर से पीढ़ियों को साथ–साथ बैठाकर उनके बीच सीधे संवाद स्थापित करने की कोशिश की । आमने–सामने से प्रारंभ हुई इस यात्रा की परिणति साथ–साथ में हुई । इस आयोजन में कथाकार और आलोचक दोनों की मौजूदगी ने पाठकों को पीढ़ियों के दरम्यान छाए कोहरे, सहमति–असहमति को, सोच की रगड़ से उपजी रोशनी में बहुत कुछ साफ किया । आत्मीय माहौल में कुछ गिले–शिकवे के स्वर भी सामने आए जो रिश्तों में दरार डालने के बजाय उसे मजबूत करने वाले थे । शिकायतें वही होती है, जहां उम्मीदें होती है । नई और पुरानी पीढ़ी दोनों को एक–दूसरे से शिकायत है कि दूसरी पीढ़ी उन्हें पढ़ती नहीं–बिना पढ़े ही एक खास तरह की धारणा बना ली जाती है जो ‘पूर्वाग्रह’ के पायों पर खड़ी है । ‘पाखी’ के आयोजनों के पीढ़ियों को साथ संवाद का का हेतु चीजों को सही नाम से पुकारने और विभिन्न पीढ़ियों के दरम्यान संवाद के सेतु का निर्माण करना था । इस पुस्तक में पांच आयोजनों में पीढ़ियों के बीच हुए संवाद में वह किस तरह आया है, यह पुस्तक पढ़कर आप खुद तय करें ।

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