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Shyamli
‘श्यामॅली’ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की श्रेष्ठतम काव्यकृतियों में से एक है । इसका महत्त्व इस बात में भी है कि इसमें उनकी, नि/ान से पाँच वर्ष पूर्व के ढाई महीनों के दौरान सिलसिलेवार लिखी गई 21 लम्बी कविताएँ संग्रहीत हैं, जिनमें सौंदर्य, प्रेम, ओज, परम्परा, ऐतिह्य और दर्शन से जुड़ी उनकी भाव–स्मृतियाँ कविता में रूपांतरित हुई हैं । इन कविताओं की रचना के समय रवीन्द्रनाथ 75 वर्ष के थे और पाठक यहाँ लक्ष्य करेंगे कि उन्होंने एक–एक दिन में दो–दो अपेक्षाकृत बड़े फलक की भावपूर्ण ‘नरेटिव’ कविताएँ रचीं । ऐसी उत्कट सृजन–सामर्थ्य थी उनमें! रवीन्द्रनाथ हिन्दी में बहुत अनूदित हुए हैं और उस ‘बहुत’ में अ/िाकांश ‘गीतांजलि’ की पुनरावृत्तियाँ हैं । ‘श्यामॅली’ अपनी सम्पूर्णता में हिन्दी में पहली बार आ रही है और लयात्मक कविता की शर्त पर । उनकी डेढ़ सौवीं वर्षगांठ के अवसर पर, कवि के प्रति, इससे बेहतर भावांजलि और क्या हो सकती है! रवीन्द्र कविता के विश्व–व्यक्तित्व थे । कालिदास, भवभूति, रूमी, दांते, जयदेव और शेक्सपियर की परम्परा के श्रेष्ठतम उत्तराधिकारी । 1861 में उनका जन्म हुआ और किशोरावस्था पार करते–न–करते वे काव्य–रचना में प्रवृत्त हो गए । उनके नाम से उनकी पहली काव्यकृति ‘प्रभात संगीत’ 1882 में प्रकाशित हुई । ‘गीतांजलि’ पर 1913 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया । 7 अगस्त 1941 को 80 वर्ष की वय में उनका देहान्त हुआ और अंतिम श्वास छोड़ने से 7 दिवस पूर्व (31 जुलाई) तक वे निरन्तर कविता रचते रहे । उनकी कुल काव्यकृतियों की संख्या 73 है । नाटक, उपन्यास, कहानी, निबं/ा, संस्मरण आदि अन्यान्य वि/ााओं में भी उन्होंने कालजयी कृतियाँ दीं । वे बहुत उर्वर चित्रकार भी थे । उनकी कलाशैली सर्वथा मौलिक और अनूठी है । ‘रवीन्द्र संगीत’ के जरिये उन्होंने गायन और संगीत का पथ–प्रशस्त किया । शिक्षा के क्षेत्र में ‘शांतिनिकेतन’ का ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ उनका जीता–जागता अवदान है ।
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