• New product

Stri : Paridhi Ke Bahar

(0.00) 0 Review(s) 
2021
978-93-82554-00-4

Select Book Type

Earn 4 reward points on purchase of this book.
In stock

भारतीय नवजागरण की पृष्ठभूमि में स्त्री प्रश्न पर विचार करना समकालीन स्त्री विमर्श को समझने के लिए बेहद जरूरी है । नवजागरण काल में निराला को 1930 के भारत का आकाश स्त्रियों के क्रंदन से गुंजायमान दिखाई पड़ा था । यह आकस्मिक नहीं था कि स्त्रियों की यातना को समर्पित ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ के लेख भी 1930 से 1942 के बीच ही लिखे गए थे । भारतेंदु युग में भारत के जिस ‘निज स्वत्व’ की बात उठी वह उस पीड़ा की ही निष्पत्ति थी जिसे देखकर आश्चर्य होता था कि, ‘इतने बड़े हिन्दुस्तान में दस–पाँच पुरुष भी ऐसे नहीं हैं जो स्त्रियों को मनुष्य समझते हों’ । यह किताब नवजागरण काल से शुरू हुई स्त्री आत्मकथाओं के जरिए भारत के आकाश और धरती का कलेजा झकझोर देने वाली विधवा स्त्रियों के प्रति एक मार्मिक श्रद्धांजलि भी है । इस पुस्तक में स्त्री आत्मकथाओं का इतिहास और समाजशास्त्र सिरे तो है ही । इसके साथ ही यह स्त्री संघर्षों का ताना बाना भी है । देखा जाय तो थेरि गाथाओं, मीरा और पंडिता रमाबाई के देश में इस विषय पर विचार की आवश्यकता सिर्फ ऐतिहासिक सन्दर्भों तक सीमित नहीं हो सकती । उसका अपना एक समाजशास्त्रीय आधार भी है । जिसकी पड़ताल यह पुस्तक करती है । संगीता मौर्य ने इस किताब में गंभीर अध्ययन के साथ विश्लेषण की प्रखर दृष्टि से एक नयी उम्मीद जगाई है । हिंदी समाज का एक सदस्य होने के नाते मैं, संगीता को अपने चिंतन और लेखन से भविष्य में निरंतर हिन्दी समाज का रचनात्मक मार्गदर्शन करने के लिए शुभकामनाएँ देता हूँ । प्रो– गजेंद्र कुमार पाठक अध्यक्ष हिंदी विभाग हैदराबाद विश्वविद्यालय, तेलंगाना

You might also like

Reviews

No Reviews found.