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Summer Vacation

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2019
978-93-82554-92-9

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वहाँ बेंच पर बैठे कई और यात्री इसी बस का इंतजार कर रहे थे, उन्हीं के साथ वे भी बैठ गए । थोड़ी देर में बस वर्कशॉप से आकर अपने निर्धारित स्थान पर खड़ी हो गई । सुबह सुबह दूर दराज के गाँव तिलेसर जाने वाले लोगों की संख्या अधिक नहीं थी, बस की आधी सीटें खाली पड़ी थीं । बैठने के लिये दिनेश को सीट तो आसानी से मिल गई किन्तु यात्रा उतनी आसान नहीं थी । कहने को तो सड़क पक्की थी लेकिन दशा अत्यंत दयनीय थी । कहीं तारकोल गायब हो गया था तो कहीं पत्थर, गड्ढों की कोई गिनती ही नहीं । रास्ते भर हिचकोलें खिलाती, जगह जगह यात्रियों को उतारती चढ़ाती, बस को तिलेसर तक सैंतीस किलोमीटर का सफ़र तय करने में दो घंटे से अधिक का समय लग गया । यहाँ पर यात्री उतरने लगे तो दिनेश भी सबके साथ उतर गये । बस पूरी खाली हो गई । कुछ समय रुकने के बाद, मिर्जापुर शहर की ओर जाने वाले यात्रियों को लेकर बस वापस हो गई । एक हाथ में अटैची और दूसरे में झोला लिये दिनेश इधर उधर नजरें दौड़ाने लगे । जहाँ बस रुकी थी, वह एक बड़ा सा चैरस मैदान था । उसके किनारे एक चाय पान की एक दुकान थी जिसके सामने लकड़ी की दो बेंचों पर कई लोग बैठे बातें कर रहे थे । कुछ लोग यों ही निरुद्देश्य आस पास घूम रहे थे । गाँवों में अधिकतर लोग एक दूसरे को जानते हैं । यहाँ के लिए दिनेश नये थे, उत्सुकता बस एक आदमी उनके पास आकर बोला, “लगता है पहली बार यहाँ आये हैं, आप को कहाँ जाना है ?” ---समर वेकेशन से

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