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Swatantroyattar Kavita Aur Ramdarash Mishra Ka Kavya-Vashishtya
यी कविता सामाजिक जीवन से जीवन्त जुड़ाव के अभाव में निरन्तर पतनोन्मुख प्रवृत्तियों की ओर बढ़ती हुई अकविता के हस्र तक आती है । ठीक यहीं से प्रगतिशील काव्य–परम्परा की शक्ति पुन% जीवन प्राप्त करती हुई केन्द्र में स्थापित होती है । सातवाँ दशक मुक्तिबोध के साथ–साथ अन्य प्रतिबद्ध कवियों की जनवादी कविताओं के मूल्यवान और बहस का दशक है । यहाँ से कविता की स्पष्ट प्रतिबद्ध परम्परा शक्ति लेती हुई दिखाई देती है । रामदरश मिश्र का सम्बन्ध कविता की इसी प्रतिबद्ध परम्परा से है । मार्क्सवादी विचारधारा के प्रति अपने विश्वास के कारण ही वे जीवन के समूचे विकास को उसकी समग्रता में देख पाते हैं । उनका रचनाकार साकार मनुष्य और मनुष्यता की मुक्ति का स्वप्न देखने वाला चिन्तक रचनाकार है । स्पष्ट रूप से मिश्र जी जीवन की सकारात्मक प्रतिज्ञाओं के कवि हैं । उनकी काव्य–यात्रा में लगातार उनकी सामाजिक चेतना अधिक प्रखर और प्रौढ़ होती गयी है । वे मूलत% सामाजिक चेतना के कवि हैं और उनकी नितान्त वैयक्तिक चेतना भी अन्तत% सामाजिक सरोकारों को समर्पित हो जाती है । वे इन सामाजिक मूल्यों को मात्र चित्रित ही नहीं करते, अपितु उसमें उनके मन की छटपटाहट और मानवीय मूल्यों की पक्षधरता अधिक साफ रूप में दिखाई पड़ती है । उनके लगभग सभी संग्रहों में मानवीय पीड़ा और सामाजिक सरोकारों के प्रति चिन्ता को देखा जा सकता है । इसके साथ ही साथ मिश्र जी का जीवन के प्रति साक्षात्कार यथार्थ को उसके असलीपन में पहचानने की गहरी किन्तु सहज प्रक्रिया भी दिखाई पड़ती है । उनकी आत्म–पीड़ा में भी जो आशा–आकांक्षा का स्वर सुनाई पड़ता है, वह भी लोकोन्मुख ही अधिक है ।
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