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Tokani Bhar Duniya

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2016
978-93-82554-01-1

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ये कहानियाँ बुनियादी तौर पर इंसानी सरोकारों की कहानियाँ हैं । औसत आदमी के सपनों–संघर्षों, आशा–हताशाओं और चिन्ताओं की कहानियाँ । इनमें बेशक बड़े दावे नहीं हैं लेकिन अपनी एक खास तरह की सहजता के बीच कुछ बेहद जरूरी और बड़े सवाल खड़े करने की कोशिशें जरूर हैं । इसलिए कई जगह ये कहानियाँ फेंटेसियों में भी जाती हैं, अपनी आवश्यक कथात्मकता का प्राथमिक रूप से निर्वाह करते हुए । नब्बे के बाद का दौर महास्वप्नभंग के बाद का दौर रहा है । आदमी की बुनियादी बेहतरी के लिए देखे गये विराट् स्वप्न के ध्वस्त होने के बाद का यह समय अपने जानलेवा दंशों के साथ इस संग्रह की कई कहानियों में महसूस किया जा सकता है । जाहिर है, ये कहानियाँ मौजूदा दौर के कुछ खास तरह के छद्मों–तिलिस्मों की हकीकत देखने–समझने का ईमानदार प्रयास करती हैं । और ऐसा करते हुए मानवीय गरिमा से जुड़े कुछ अत्यन्त प्रासंगिक प्रश्नों को भी रेखांकित करती हैं । इन कहानियों की भाषा और रचाव में अगर कोई चैकाऊपन नहीं है तो इन कहानियों की तासीर को देखते हुए स्वाभाविक ही है । हालाँकि, भाषा के मामले में इनमें लापरवाही भी नहीं है बल्कि हर जगह एक ज“रूरी किस्म की जि“म्मेदारी और सतर्कता ही है । रचाव के लिहाज“ से इनमें अगर कुछ अलग–अलग तरह की तकनीकों का इस्तेमाल हुआ मिलता है तो वह किसी ख़्ाास तरह के चमत्कार के इरादे से नहीं बल्कि कहानियों के मूल कथ्य के दबाव के चलते ही हुआ है ।

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