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Ujaalo Ka Safar

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2013
978-93-81997-98-7

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केतकी भारतीय की कविताओं का पहला संकलन ‘उजालों का सफ़र’ को पढ़ते समय मेरे मन में एरिक फ्रॉम के सिद्धान्त घूमते रहे । यह संकलन मानो मुझे चालीस–पचास वर्ष पीछे ले गया । इस संकलन में जो निकटतम संबंधी है वही सबसे अधिक अजनबी है । केतकी भारतीय ने इस अजनबी और उसकी अजनबियत को अपनी कविताओं में बार–बार उडे़ला है । वे एक सांस्कृतिक विरासत से सम्पन्न युवती हैं जिनके भीतर का कवि अपने माध्यम से नारी–विमर्श करता प्रतीत होता है । पति–पत्नी का रिश्ता सबसे गहरा रिश्ता है । तिस पर यदि प्रेमी–प्रेमिका पति–पत्नी बन जाते हैं तो लगता है उनका दाम्पत्य–जीवन औरों से अ/िाक सुखद होगा । परन्तु इस संकलन की कविताओं की नायिका सहयात्री में किसी अजनबी को पाती है ।

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