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Umar Jitana Lamba Pyar

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2017
978-93-87145-25-2

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उसने ऑँखें खोलीं । खूब गहरी नज“रों से देखा था मुझे, ‘‘हॉँ, कहना है तुमसे ही तो कहती रही हॅूँ सबकुछ पर आज कोई दुखड़ा नहीं आज तो सुख कहूॅँगी । नीला, दुनिया की सभी औरतें अपने पति की इज्जत करना चाहती हैं, प्यार करना चाहती हैं । पति के रूप में परमेश्वर की कामना करती हैं । मैं भी उन्हीं औरतों जैसी ही तो थी । पति द्वारा बहुत–बहुत तिरस्कृत होने के बावजूद कभी–कभी उस पर दया, प्यार जैसा कुछ उमड़ता । बेड के किनारे से खिसक कर मैं उसकी तरफ उसके लिहाफ में घुस आती उसके सीने से लगकर सोने को जी चाहता उसकी बाँहों में सर रख कर उसके सीने में अपनी नाक घुसाकर माथे पर उसकी ठुड्डी और बालों पर उसके हाथों की सहलाहट इन सबके लिए मन तड़पसा उठता । उसके लिए बहुत–बहुत नफरत महसूस करने के बावजूद उसी से इन कोमल भावनाओं की आशा भी करती थी । जाती थी इस आशा से कि वह हर तरह से तृप्त आदमी, मुझे अपनी बाँहों में ले, सांत्वना का हाथ मेरे सिर पर फेर मेरी थकी ऑँखों को थोड़ीसी सुकून भरी नींद दे देगा । पर होता यूॅँ था कि मेरे सान्निध्य से उसकी तृप्त देह में फिर से कामनाओं की आंधियॉँ उठने लगतीं ।

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