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Uttar aadhunik Vimarsh Aur Duandvaad

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2020
978-93-81272-07-7

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उत्तर–आधुनिक क्या है ? उत्तर आधुनिक सिद्धान्त क्या है ? उत्तर–आधुनिक चेष्टा क्या है ? अभी तक ध्वनि और विचार की सस्युरियन परम्परा में और भाषा–खेल के सिद्धान्त में इस उत्तर–आधुनिक की संस्कृति–चर्चा और साहित्यिकता को ही खूब महत्त्व दिया जाता रहा है । यह उत्तर–आधुनिक संस्कृति, इतिहास से अपना कोई जुड़ाव नहीं रखती है । क्या इस उत्तर आधुनिक में संस्कृति और साहित्य के अलावा भी कुछ और है ? इस उत्तर–आधुनिक का भौतिक क्या है ? इस उत्तर–आधुनिक का वास्तविक और व्यावहारिक क्या है ? इस उत्तर आधुनिक का समृद्ध क्या है ? इसका विकास क्या है ? यह भी कि क्या इस उत्तर–आधुनिक का कोई मूल्य–एजेंडा भी है ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो उत्तर–आधुनिक भाषिकी और उत्तर–आधुनिक साहित्यिकी के बाहर के हैं । इस किताब की यह विशेषता है कि इसमें उत्तर आधुनिक साहित्यिकी के अलावा उत्तर–आधुनिक की अन्य समस्याओं और पहेलियों पर भी विचार किया गया है । चूँकि, यह किताब हिन्दी में है, इसलिए ‘यह बहुत कठिन है’, इसकी ‘भाषा भी कठिन है’, कहकर इसे नहीं पढ़ने का मन बनाया जा सकता है । दरअसल यह एक तरह का बौद्धिक शैथिल्य है । अगर कोई इस पुस्तक को पढ़ने का मन बना ले तो एक आवश्यक एकाग्रता पाठ के समानान्तर स्वत% विकसित होती जाती है, अलग से किसी मानसिक तैयारी की जरूरत नहीं होती । यह तय पाठकों को करना है कि वे इस किताब के पाठ को किस प्रकार ग्रहण करत हैं ?

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