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Antarikshsuta

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2022
978-93-92380-72-3

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‘अंतरिक्षसुता’ चर्चित कवि अनिल विभाकर का तीसरा कविता–संग्रह है । वह लंबे समय से कविताएं लिख रहे हैं और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपना एक अलग मुकाम हासिल कर चुके हैं । समय की विडंबना और समाज की विसंगतियों पर वे कठोर प्रहार करते हैं । कई बार तो त्वरित प्रतिक्रिया के माध्यम से भी सार्थक हस्तक्षेप करते दिखते हैं । आईपीएल में खिलाड़ियों की नीलामी पर उनकी एक गहरी और चोट करने वाली कविता है, ‘बिकने का जश्न’ % ‘मवेशियों के बिकने पर लोग इतने खुश नहीं होते जितने एक आदमी के बिकने पर’ अनिल विभाकर हमेशा अपनी अलग राह बनाने की कोशिश करते हैं और इस क्रम में उनकी कविता कई स्तर पर जद्दोजहद करती भी दिखती है । उसकी ख़ूबसूरती यह है कि कविता किसी विचार को स्थापित करने से कहीं अधिक, वैचारिक संघर्ष को व्यक्त करने की कोशिश करती है । इस क्रम में, कई बार ज़रूरी सवाल भी छोड़ जाती है । ‘गुरुमंत्र’ और ‘जो कभी चुने नहीं जाते’ जैसी कविताएं, अगर लोकतंत्र की सैद्धांतिकी को महिमामंडित करते हुए आज की वास्तविक स्थिति को नजरअंदाज कर देती है, तो दूसरी तरफ़, ‘नुस्ख़ा’ जैसी कविता आज की विसंगति पर गहरी चोट भी करती है । इसी तरह ‘पुरखौती’ एक बेहद मार्मिक कविता है । अपनी संस्कृति और परंपरा से प्यार करने वाले आस्तिक कवि हैं अनिल विभाकर । लेकिन, आस्तिकता के सांप्रदायिक रूप ले लेने के ख़तरे के प्रति सजग भी हैं । कहीं–कहीं सजगता कम होती है तो सवाल बड़े हो जाते हैं । परंतु, ऐसा बहुत कम हुआ है । वह प्राय%, धर्म के लोक पक्ष को सामने लाते हैं और इसके माध्यम से अब्राह्मणीकरण को मज़बूत करते हैं । ‘करमा बाई’ जैसी कविता इसका उदाहरण है । अनिल विभाकर का अनुभव संसार व्यापक है । एक पत्रकार के रूप में उन्होंने छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में लंबे समय तक काम किया है, जिसका प्रतिफल है सुवर्णरेखा, नियमराजा, कलाहांडी और बस्तर जैसी उनकी कविताएं, जो हिंदी कविता में कुछ नया जोड़ती हैं । निस्संदेह इन कविताओं का अपना अलग आस्वाद है । -मदन कश्यप

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