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Atharva : Main Vahi Van Hoon
प्रिय आनन्द, सुखद और अप्रत्याशित–अकल्पनीय सा विस्मय उपजाया तुम्हारी इस ‘लेटेस्ट’, हालाँकि बरसों से दशकों से धीमी आँच पर पकती और अब जाकर दुनिया के सामने उजागर हुई, करतूत ने । ‘अथर्वा’ नाम भी मेरे लिए बहुत परिचित और ध्यानाकर्षक और अर्थाेत्तेजक नाम नहीं था । पहली बार तुमने इसका माहात्म्य इतने रोचक ढंग से और एक नयी खोज सरीखी सनसनी उपजाते हुए प्रस्तुत किया ।–––ऐसी महत्त्वाकांक्षी सर्वाश्लेषी रचना को पूरी तरह ‘कंसीव’ और ‘प्रेजेंट’ करना बडी कठिन दुस्साध्य चुनौती थी जिसे तुमने यथाशक्य उठाने–निबाहने की कोशिश की है । रमेश चंद्र शाह
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