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Bramargeet Sar
‘भ्रमरगीत’ सूरसागर के भीतर का एक सार रत्न है । समग्र सूरसागर का कोई अच्छा संस्करण न होने के कारण ‘सूर’ के हृदय से निकली हुई अपूर्व रसधारा के भीतर प्रवेश करने का श्रम कम ही लोग उठाते हैं । मैंने सन् 1920 में भ्रमरगीत के अच्छे पद चुनकर इकट्ठे किए और उन्हें प्रकाशित करने का आयोजन कियाय पर कई कारणों से उस समय पुस्तक प्रकाशित न हो सकी । छपे फार्म कई बरसों तक पड़े रहे । इतने दिन पीछे आज ‘भ्रमरगीत सार’ सहृदय–समाज के सामने रखा जाता है ।
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