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Chandan Van

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2016
978-93-82553-57-1

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साधना में कुछ मूल बातें होती हैं और कुछ गौण बातें । मूल साधना और सहयोगी साधना में भी अन्तर होता है । मूल साधना दृश्य नहीं बनती अर्थात् उसमें द्रष्टा एवं दृश्य का विभाजन नहीं रहता । उसमें सम्यक् दर्शन होता है । सहयोगी साधन मूल साधन के लिए साधक को प्रस्तुत करता है । त्याग मूल साधन है, दान सहयोगी साधन है । शरणागति–समर्पण मूल साधन है, जप, तप सहयोगी साधन हैं । ध्यान मूल साधन है, आसन और वातावरण सहयोगी साधन हैं । फिर ‘करने की प्रक्रिया’ और ‘निर्णय का प्रभाव’ अलग–अलग कोटि के हैं । ‘करने की प्रक्रिया’ अभ्यास को लेकर चलती है, अभ्यास शरीर के आश्रय से होता है । देहातीत–जीवन में प्रवेश अभ्यास के बल से, संकल्प के जोर से, करने की प्रक्रिया से नहीं होता । ‘कुछ करना’ तो सहयोगी साधन–भर है । कुछ करने में श्रम है । मूल साधन कोई अभ्यास, अनुष्ठान–सा श्रमसाध्य प्रयोग नहीं है । विश्वास अभ्यास का फल नहीं है । बोध अभ्यास का फल नहीं है, प्रेम अभ्यास का फल नहीं है । श्रम और प्रयत्न के द्वारा तैयारी, प्रस्तुति, योग–बोध–प्रेम की उपलब्धि के लिए आवश्यक नहीं है । जो विवेकसाध्य है, वह श्रमसाध्य नहीं है । अत: अचाह एवं अप्रयत्न हो जाने पर योग बोध एवं प्रेम स्वत: प्रकट हो जाते हैं । मूक सत्संग संकल्प के व्यायाम से नहीं बनता है । -इसी पुस्तक से

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