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Chhayawadi Aalochana
छायावाद का सर्वाधिक विवादास्पद पक्ष उसमें कथित रहस्यवाद है । छायावाद का संबंध रहस्यवाद से जोड़ने की परंपरा छायावाद के अभ्युदय काल में ही चल पड़ी थी, जो छायावाद के अवसान के बाद भी चलती रहीय जबकि वस्तुस्थिति बिलकुल इसके विपरीत है । छायावादी कविता रहस्यवादी नहीं है और कहीं है भी तो वह मध्यकालीन निर्गुनियाँ और सूफी संतों के रहस्य से बिलकुल भिन्न है । वस्तुत% छायावादी कविता में दिखाई देने वाला रहस्य तत्कालीन व्यक्ति और समाज के परस्पर द्वंद्व का परिणाम है । महादेवी वर्मा का काव्य तो और भी रहस्यवादी नहीं है । उनकी कविताओं में दिखाई पड़ने वाला रहस्य पुरुषसत्तात्मक समाज के विधि–निषेध और नैतिकताएँ हैं, जो स्त्री के लिए किसी कारा से कम नहीं हैं । इसीलिए उसकी दुनिया इतनी संकीर्ण हो गई थी । अंधकार में जी रही नारी आधुनिक युग में सचेत हुई और अपने अस्तित्व को बचाने तथा अपनी संकीर्ण दुनिया के बाहर की वास्तविक और विस्तीर्ण दुनिया को जानने के लिए बेचैन हो उठीµ‘खोल दो यह क्षितिज मैं भी देख लूँ उस ओर क्या है ?’ अपने जाग्रत विवेक के कारण वह विद्रोह के रास्ते पर चल पड़ी, किन्तु परम्पराओं और विधि–निषेधों को उच्छिन्न न कर पाने के कारण वह आत्मदमन के लिए विवश हुई । महादेवी में यही विद्रोह और आत्मदमन है जिसके कारण उनकी अभिव्यक्ति रहस्यमय प्रतीत होती है । अफ़सोस है कि आचार्य शुक्ल का ध्यान छायावादी कवियों की इस मनोवृत्ति की ओर नहीं गया और उन्होंने छायावाद में रहस्यवाद संबंधी जो स्थापनाएँ कीं, उनके बाद के आलोचकों ने उनका खंडन करने की बजाय उसे और पुष्ट किया । -‘अपनी बात’ से
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