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Ek Shikshak Ki Diary
राधाकृष्ण सहाय को कविताओं से बहुत प्रेम है । उनका जीवन एक तरह से कविता ही है । उनके हर रूप में कविताएं मौजूद हैं । चाहे लेखन हो, चाहे रंगकर्म हो या फिर छात्रों के साथ उनके संबंध हों । वे खुद को कवि रूप में देखना चाहते हैं । छोटी–छोटी कविताओं में वे बहुत मुखर रहते हैं । इस संग्रह में मौजूद कविताएँ इसके गवाह हैं । यों वे अपने को एक शिक्षक ही मानते रहे । इस बात को वे बार–बार दुहराते भी रहे हैं । उन्होंने कहानियाँ भी लिखीं, संस्मरण भी और नाटक तो जैसे उनके मन–प्राण के जरूरी हिस्से की तरह ही रचे जाते रहे, लेकिन उनका सर्वाेत्तम रूप कविताओं में मौजूद हैं । वे जर्मनी पढ़ाने के लिए गये तो उन्होंने एक किताब लिखी–‘फिर मिलेंगे ।’ अद्भुत किताब है यह । यह किताब ज्यादा प्रचारित नहीं हुई , दरअसल राधाकृष्ण सहाय अपनी कविताओं में ही समग्रता से व्यक्त होते हैं । इस कविता पुस्तक को पढ़कर आप एक बेहतरीन शिक्षक की समझ, दृष्टि और उनके संसार को समझ सकते हैं । उनकी कविताओं में वे खुद मौजूद हैं और मौजूद हैं वे सारी स्थितियॉं जिनसे वे जुड़ते हैं । जिनमें शिक्षा है, छात्र है, परिवार है, समाज की सच्चाई है । वे नकारात्मक मन के कभी नहीं रहे हैं, बल्कि उनकी सृजनशीलता पूरे परिवेश को अनुप्राणित करती है । शायद इसीलिए छात्रों की कई पीढ़ियों के वे नायक हैं । वे बेवजह शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते । उनकी कविताओं में न कहीं धुँध है न धुआं । कज्जल पानी की तरह उनकी पारदर्शी कविताएँ बाहर भी रोशनी फैलाती हैं और अन्दर भी । —डॉ– योगेन्द्र प्रोफेसर हिन्दी विभाग, टी एन बी कॉलेज, भागलपुर
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