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Krantikari Ki Aatmakatha

(4.67) 3 Review(s) 
2021
978-81-953984-6-1

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7 फरवरी 1908 काशी में जन्म । 1921 में असहयोग आंदोलन के बाद काकोरी में सरकारी खजाना लूटने की घटना (1925) में सक्रिय हिस्सेदारी । ‘हिदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के प्रमुख सदस्य । चन्द्रशेखर आज़ाद को क्रांतिकारी दल में लाने का श्रेय । काकोरी मुकदमे में कम उम्र के चलते फांसी से बचे लेकिन 14 वर्षों का कठोर कारावास । बाद मेंं भी कई बार जेल–यात्रा । बंदी जीवन ने राजनीतिक बंदियों के अधिकारों के लिए लंबी भूख हड़ताल की । बरेली जेल में पहली पुस्तक ‘काकोरी के शहीद’ लिखी जो जब्त हुई । ‘क्रांतिकारी की आत्मकथा’ के साथ ‘भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास, ‘शहीद भगत सिंह और उनका युग’, ‘दे लिव्ड डेंजरसली’, ‘क्रांतिकारी आंदोलन का वैचारिक विकास’, ‘अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद और उनका युग’, ‘भूले–बिसरे क्रांतिकारी’, ‘भारत के क्रांतिकारी’ तथा ‘आधी रात के अतिथि’, ‘तोड़म–फोड़़म’ जैसे अनेक उपन्यासों व कहानियों के साथ आलोचना की पुस्तकें भी लिखीं । भारत सरकार के प्रकाशन विभाग मेंं रहकर ‘बाल भारती’, ‘योजना’ और ‘आजकल’ पत्रिकाओं का संपादन किया । हिंदी, बंगला तथा अंग्रेजी में लगभग डेढ़ सौ पुस्तकें लिखीं । अनेक अनुवाद कि, जिनमें विभूतिभूषण बंद्योपध्याय का प्रसिध्द बंगला उपन्यास ‘पथेर पांचाली’ और ‘सुकरात का मुकदमा’ प्रसिध्द हैंं । 26 अक्टूबर 2000 को दिल्ली में निधन ।

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Reviews
यह पुस्तक वास्तव में एक महान क्रांतिकारी के जीवन का बहुत ही गहरा और प्रेरणादायक विवरण प्रस्तुत करती है। मनमथ नाथ गुप्ता ने अपनी लेखनी में उनकी देशभक्ति और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका को बहुत ही बढ़िया ढंग से प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक सभी को पढ़नी चाहिए जो भारतीय इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम के बारे में अधिक जानना चाहते हैं।
Anmol Singh, Haidrabad
यह पुस्तक एक अद्वितीय दृष्टिकोण से देशभक्ति के अनमोल भावों को दर्शाती है। मनमथ नाथ गुप्ता ने अपने अनुभवों को बहुत ही सरलता से और समझाने योग्य ढंग से लिखा है। इसे पढ़कर आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्ति में राष्ट्रभक्ति का गहरा संबंध बनता है।
Bhagat singh, Delhi
मनमथ नाथ गुप्ता की 'क्रांतिकारी की आत्मकथा' एक प्रेरणादायक और अनुपम ग्रंथ है। इस पुस्तक ने मुझे अपने देश के वीर सपूतों की समर्पणशीलता और समर्पण को समझने में मदद की है
Priti Prasad, Kerela