• New product

Mai Tumhara Aaina

(0.00) 0 Review(s) 
2017
978-93-82554-74-5

Select Book Type

Earn 3 reward points on purchase of this book.
In stock

एक बार फिर इन चंद रचनाओं के साथ आपके सामने हूँ । मेरे पास एक आइना है वैसा ही जैसा आपके पास है । हम सभी इस आइने में अपने समय की सच्चाइयों को रीझना–बूझना चाहते हैं । दूसरे शब्दों में कहें तो हम जीवन को अपने–अपने आइने में परिभाषित करना चाहते हैं––––– अपनी सारी क्षमताओं और सीमाओं के साथ! किन्तु अकथ और अगेय भला कहीं किसी के आने में समा सका है ? हर बार कोशिश होती है कि भोगे हुए अनुभवों को श्रृंखला में हम जीवन–सत्य को बाँध पाएँ किन्तु हर बार वह इन श्रृंखलाओं को तोड़कर दूर खड़ा मुस्कराता हुआ मिलता है । शायद इसीलिए बार–बार रचना–कर्म की आवश्यकता महसूस होती है । मैं आपका आइना हूँ जिसमें आप अपने को मेरी सीमाओं में देख और महसूस कर सकते हैं । आप मेरा आइना हैं जिससे मैं आपकी सीमाओं को आकार पाता हूँ । क्या आपको नहीं लगता कि आइना देखने और दिखाने का यह क्रम ही जीवन के किसी व्यापक अर्थ की तलाश को छटपटाहट के साथ रेखांकित करता है । तो चलिए देखा जाए कि इस आइने में क्या–क्या, किस–किस रूप में नजर आता है । जो नजर आता है उस पर आप रीझ और खीझ तो सकते हैं पर कन्नी काट कर नहीं निकल सकते आखिर मेरा आपका एक रिश्ता है–बिम्ब–प्रतिबिम्ब का रिश्ता । यह रिश्ता मुझे और आपको भाव से महाभाव की ओर ले जाता है । हम यह क्यों भूलें कि इस आइने में जो कुछ दीख पड़ता है । वह हूबहू नहीं होता । वाम दक्षिण हो जाता है और दक्षिण वाम । यानी स्थितियाँ बदल जाती हैं इसलिए हम अपने को बदली हुई परिस्थितयों के साथ पहचानने लगते हैं । यह आइना आपका है । इसमें मैं भी हूँ आप भी हैं । इस आइने में जो नहीं समा सका चलिए मिलकर उसकी तलाश के लिए निकलते हैं ।

You might also like

Reviews

No Reviews found.