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Malik Mohammad Jayasi
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म सं– १८८४ में बस्ती जिले के अगोना नामक गांव में हुआ था । पिता पं– चंद्रबली शुक्ल की नियुक्ति सदर कानूनगो के पद पर मिर्जापुर में हुई तो समस्त परिवार मिर्जापुर में आकर रहने लगा । जिस समय शुक्ल जी की अवस्था नौ वर्ष की थी, उनकी माता का देहांत हो गया । मातृ सुख के अभाव के साथ–साथ विमाता से मिलने वाले दु:ख ने उनके व्यक्तित्व को अल्पायु में ही परिपक्व बना दिया । अ/ययन के प्रति लगनशीलता शुक्ल जी में बाल्यकाल से ही थी । किंतु इसके लिए उन्हें अनुकूल वातावरण न मिल सका । किसी तरह उन्होंने एंन्ट्रेंस और एफ– ए– की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं । उनके पिता की इच्छा थी कि शुक्ल जी कचहरी में जाकर दफ्तर का काम सीखें, किंतु शुक्ल जी उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे । पिता जी ने उन्हें वकालत पढ़ने के लिए इलाहाबाद भेजा पर उनकी रुचि वकालत में न होकर साहित्य में थी । अत: परिणाम यह हुआ कि वे उसमें अनुत्तीर्ण रहे । शुक्ल जी के पिताजी ने उन्हें नायब तहसीलदारी की जगह दिलाने का प्रयास किया, किंतु उनकी स्वाभिमानी प्रकृति के कारण यह संभव न हो सका । शुक्ल जी मिर्जापुर के मिशन स्कूल में अ/यापक हो गए । इसी समय से उनके लेख पत्र–पत्रिकाओं में छपने लगे और धीरे–धीरे उनकी विद्वता का यश चारों ओर फैल गया । उनकी योग्यता से प्रभावित होकर काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने उन्हें हिंदी शब्द सागर के सहायक संपादक का कार्य–भार सौंपा । जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया । वे नागरी प्रचारिणी पत्रिका के भी संपादक रहे । शुक्ल जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी अध्यापन का कार्य भी किया । बाबू श्याम सुंदर दास की मृत्यु के बाद वे वहां हिंदी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए । २ फरवरी, सन् १९४१ को हृदय की गति रुक जाने से शुक्ल जी का देहांत हो गया ।
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