- New product
Parampra, Aadhunikta Aur Dinkar
परंपरा और आधुनिकता का सम्बन्ध मूलत: मनुष्य की काल–चेतना से है । अतीत, वर्तमान और भविष्य के सुविधामूलक विभाजन के अंतरंग में निहित काल की सतत प्रवहमानता का अंत:साक्षात्कार ही परम्परा और आधुनिकता का सर्जनात्मक ग्रहण है । काल के असीम प्रवाह में मनुष्य ने निरंतर अपनी अस्मिता को सार्थक सिद्ध करने का प्रयत्न किया है । विराट् काल–देवता के चरणों मेंे उसने अपनी निजता को अक्षुण्ण और प्रासंगिक बनाए रखने के लिए अखंड और तप%पूत साधना की है । अपने अस्तित्व की अक्षुण्णता के लिए जहां वह देश–काल की सीमाओं का अतिक्रमण कर सार्वभौमिक और कालातीत हो जाना चाहता है, वहां प्रासंगिकता के निकष पर अपने परिवेश से जुड़े समसामयिक संदर्भों को प्रभावित करने और उनसे प्रभावित होने के दायित्व के प्रति भी वह सजग है । मनुष्य की आकांक्षाओं का यह द्वैत मूलत: इस अद्वैत से जुड़ा है कि वह काल–बोध को समग्रता में ग्रहण करना चाहता हैµअखंड, क्रमिक और गतिशील रूप मेंय काल के इस समग्र ग्रहण पर ही परम्परा और आधुनिकता का दर्शन टिका है ।
You might also like
No Reviews found.