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Premchand Ko Pehli Baar Padhte hue
आलोचक हैं तो प्रेमचन्द को पढ़े बिना आपकी शिक्षा पूरी नहीं हो सकती । किसी भी लेखक के लिये यह कम गौरव की बात नहीं है कि उसके भाषाई समाज ने उसे पढ़ा । पसन्द–नापसन्द सहमत–असहमत बाद की बात है । फिर प्रेमचन्द को पहली बार पढ़ा या सिर्फ एक बार पढ़ा । बाद मेंं भी तो पढ़ा होगा । अब तक पढ़ ही रहे होंेगे । प्रेमचन्द ऐसे लेखक तो हैं ही कि उन्हें जिसने भी पढ़ा उनकी एक राय बन गई । वे भुलाने लायक रचनाकार नहीं हैं । इसलिये हमें किसी लेखक ने यह नहीं बताया कि उन्हें अब याद नहीं है । यहाँ यह भी दर्ज करना जरूरी है कि स्कूल के पाठ्यक्रम ने प्रेमचन्द के अपने पहले पाठक दिये । इसके साथ ही यह भी रेखांकित किया जाना चाहिये कि प्रेमचन्द सिर्फ किशोरों या बच्चों के या सिर्फ प्रौढ़ों के लेखक नहीं हैं । उन्हें किशोर भी पढ़ते हैं और प्रबुद्ध पाठक भी पढ़ते हैं । इसलिये हमारी जिज्ञासा इस बिन्दु पर थी कि आपने पढ़ा तब कैसा लगा ?और प्रकारान्तर से यह भी कि उस लगने को अब आप किस तरह से देख रहे हैं ?
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