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Rajendra Yadav: Samanatar Duniya Ka Sutradhar
हिंदी कहानी की लम्बी यात्रा में राजेन्द्र यादव ‘मील का पत्थर’ है । नई कहानी के प्रमुख स्तम्भों में से वे एक हैं । उन्होंने स्वतंत्रता के बाद के बदलते समाज और विशेषकर स्त्री के बदलते स्वरूप को लेकर उत्कृष्ट कहानियाँ लिखी । समाज के वंचित, शोषित वर्ग, दलित और स्त्री को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया । उनके द्वारा ‘हंस’ का दुबारा संपादन किया गया, जो चुनौती भरा काम था । उन्हें चुनौती स्वीकार करना पसंद था । उन्होंने अपने कुशल संपादन से ‘हंस’ को नई ऊँचाई पर पहुँचाया । ‘हंस’ की यह स्थिति थी कि जिस लेखक की कहानी हंस में छप जाती थी वह स्थापित कहानीकार बन जाता था । वे अपने समय के सबसे बोल्ड, ईमानदार प्रवक्ता थे । उनका ध्यान दुनियाँ की हर घटनाओं पर होता था । वे समय के पारखी थे । उन्होंने बहुत से लेखकों को साहित्य की दुनियाँ में खड़ा किया । उन्होंने ‘स्त्री की आजादी’ और दलितों के उपेक्षित जीवन की खोज खबर ली । लोग उनके अधिकारों तथा उनके विषय में जानने लगे । राजेन्द्र जी से लोगों को हजारों असहमतियाँ थी, पिफर भी लोग उन्हें पसंद करते थे । वे जिंदादिल लेखक, इंसान थे ।
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