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Rashtravad Aur Gora
राष्ट्रवाद का राजनीतिक एवं आर्थिक संगठनात्मक आधार सिर्फ उत्पादन में वृद्धि तथा मानवीय श्रम की बचत कर अधिक संपन्नता हासिल प्राप्त करने का प्रयास है । राष्ट्रवाद की धारणा मूलत% राष्ट्र की समृद्धि एवं राजनीतिक शक्ति में अभिवृद्धि करने में प्रयुक्त हुई हैं । शक्ति की वृद्धि की इस संकल्पना ने देशों में पारस्परिक द्वेष, घृणा तथा भय का वातावरण उत्पन्न कर मानव जीवन को अस्थिर एवं असुरक्षित बना दिया है । यह सीधे–सीधे जीवन के साथ खिलवाड़ है, क्योंकि राष्ट्रवाद की इस शक्ति का प्रयोग बाह्य संबंधों के साथ–साथ राष्ट्र की आंतरिक स्थिति को नियंत्रित करने में भी होता है । ऐसी परिस्थिति में समाज पर नियंत्रण बढ़ना स्वाभाविक है । फलस्वरूप, समाज तथा व्यक्ति के निजी जीवन पर राष्ट्र छा जाता है और एक भयावह नियंत्रणकारी स्वरूप प्राप्त कर लेता है । दुर्बल और असंगठित पड़ोसी राज्यों पर अधिकार करने की कोशिश राष्ट्रवाद का ही स्वाभाविक प्रतिफल है । इससे पैदा हुआ साम्राज्यवाद अंतत: मानवता का संहारक बनता है ।
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