• New product

Vidyapati : Samay Se Samvad

(0.00) 0 Review(s) 
2019
978-93-87145-81-8

Select Book Type

Earn 7 reward points on purchase of this book.
In stock

विद्यापति हिन्दी के बड़े कवि हैं । उन्होंने संस्कृत, अवहट्ठ और मैथिली में कविताएं लिखीं । वे श्रृंगार और प्रेम के अमर गायक हैं, किन्तु उनका श्रृंगार और प्रेम मर्यादा की सीमा का उल्लंघन कर जाता है । डॉ– बच्चन सिंह ने लिखा है कि “विद्यापति कीर्तिलता में सामाजिक और साहित्यिक परंपरा का समर्थन करते हैं तो पदावली में राधा–कृष्ण के मादक, मांसल और मुक्त श्रृंगार चित्रों के द्वारा उसे तोड़ते हैं । राधा–कृष्ण के नाम पर सामाजिक मर्यादाओं की तोड़–फोड़ को ठीक न मानकर बहुत से लोगों ने उन्हें भक्त कवि कह डाला है ।” आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा हैµ‘बंगाल, असम और उड़ीसा के वैष्णव भक्तों को प्रभावित करने वाली पदावली पूर्वी प्रदेशों में सर्वत्र धर्मग्रंथ की महिमा पा सकी ।’ इस पर बच्चन सिंह की टिप्पणी हैµ“इसमें संदेह नहीं कि श्रृंगार रस और भक्तिरस में मौलिक अन्तर नहीं है, किन्तु कवि को पहले भक्त होना चाहिए । पदावली में श्रृंगार के ऐसे उत्तेजक चित्र खींचे गए हैं कि यदि उन्हें भक्ति काव्य कहा जाएगा तो श्रृंगार काव्य क्या होगा ।” इसीलिए निराला ने विद्यापति के पदों को ‘नागिन का ज़हर’ कहा है । श्यामसुंदर दास की नज़र में विद्यापति हिन्दी के पहले भक्त कवि हैं, जबकि जार्ज ग्रियर्सन की दृष्टि में वे महान भक्त कवि थे । हरिऔध के अनुसार वे ‘भगवती राधिका’ के पवित्र उद्गारों से अपनी लेखनी को रसमय बनाने वाले साहित्य के क्षेत्र में अपूर्व भावों की अवतारणा करने वाले कवि हैं, जबकि आचार्य रामचंद्र शुक्ल की राय में विद्यापति भक्त कवि नहीं, श्रृंगारी कवि हैं । रामकुमार वर्मा ने लिखा है-‘विद्यापति के इस बाह्य संसार में भगवद्भजन कहाँ, इस वय:संधि में ईश्वर की संधि कहाँ, सद्य:स्नाता में ईश्वर से नाता कहाँ और अभिसार में सार कहाँ ?’ कुछ लोगों ने उन्हें रहस्यवादी कवि भी कहा है । शिव, पार्वती, गंगा, दुर्गा और श्रीकृष्ण के स्तुतिपरक पदों के आधार पर उन्हें भक्त कवि कहा जा सकता है, क्योंकि ऐसे पदों में एक भक्त कवि की सौम्यता और उदात्तता है, जबकि उनके श्रृंगारिक पदों में उच्छृंखलता है । पदावली के राधा–कृष्ण संबंधी पद उत्तेजक चित्रों से भरे पड़े हैं ।’ पदावली में राधा का रूप अलौकिक नहीं है । उनमें वीर्यविक्षोभन की अद्भुत शक्ति है । पदावली सामंती विलास को प्रज्वलित करनेवाली रचना है । संस्कृत से लेकर अपभ्रंश तक उन्मादक श्रृंगार की जो परंपरा चली आ रही थी, उससे विद्यापति प्रभावित थे । जयदेव उनके काव्यगुरु प्रतीत होते हैं । विद्यापति की मौलिकता इस बात में है कि वे जयदेव की तरह राधा–कृष्ण का आश्रय लेकर भी लोकोन्मुख हो सके हैं । उन्होंने अपने समय के रूढ़ि जर्जर समाज की स्त्री विरोधी परंपराओं को सामने रखा, हालांकि उनके यहां विरोधाभासी चीजें भी हैं । वे एक तरफ स्त्री की विवशता और पराधीनता को रेखांकित करते हैं तो दूसरी तरफ स्त्री को भोग्या बताते हैं । अपने एक पद में उन्होंने बच्चे से ब्याही गई एक युवा स्त्री की पीड़ा को भी व्यक्त किया है । ऐसी जगहों पर विद्यापति बेहद प्रासंगिक और अर्थपूर्ण लगते हैं । अनेक जगहों पर उन्होंने स्त्री मन को छुआ है, किंतु वे उसके पक्ष में खड़े नजर नहीं आते । –––इसी पुस्तक के सम्पादित अंश

You might also like

Reviews

No Reviews found.